Poems

Experiencing Consciousness

तू इतना जल्दी न कर, सब कुछ धीरे-धीरे आएगा,

कभी सुबह होने का एहसास कर,

कभी शाम ढलने का एहसास कर।

बहुत धीरे-धीरे ये पूरी सृष्टि बदल जाती है,

तू इतना जल्दबाजी में न रह, सब कुछ धीरे-धीरे आएगा।

बस इतना कर कि खुद को खोल के रख, एक जागरूकता रख, और फिर देख,

वो खुद तेरे पास चला आएगा।

पता नहीं कितनी शामें गुजर दी, पता नहीं कितनी सुबहें निकल गईं,

इंतजार में कि कहीं से कुछ आएगा,

ईश्वर की खोज में गुमसुम दोस्तों को उसने कहा..........

कोई रौशनी, कोई साया लहराएगा।

फिर देर से समझ में आया, यहाँ कोई बाहर से नहीं आता है,

जो तलाश थी मेरी, वो मुझ में ही समाया है,

वो चुपचाप बैठा है, बस जागने की देरी है।

एक पल में जैसे सब बदल जाता है, जो खोज रहा था, वो खुद में ही मुस्कुराता है।

ये सफर अंतहीन था, फिर भी इतना पास, खुद की खोज में मिला खुद का ही एहसास।

Poems

The glorifying ancientness of Bharat

अब मैं एक अक्षर की स्थिति में पहुँच गया हूँ, इसके बाद और कुछ खोने को नहीं बचा है।

तुझे तो अभी बहुत मंजिलें पाना है, बहुत कुछ खोना और पाना है।

लेकिन मैं अब इन चीज़ों से मुक्त हो चुका हूँ, मेरे भीतर इस सृष्टि का रहस्य छुपा है। जब सब कुछ खत्म हो जाएगा, तब भी मैं रहूँगा।

तुझे पता है, मैं उस शब्द जैसा हूँ, उन तीन अक्षरों 'ओम' जैसा, जो हर समय सृष्टि में रहता है।

इस शब्द का कोई छाया नहीं, ठीक मेरे जैसा।

मैं उस नाद जैसा भी हूँ, जो सृष्टि के पीछे एक हल्की सी ध्वनि करता रहता है, एक मंद गूँज की आवाज, लेकिन कोई शब्द नहीं।

यही आवाज ही 'ओम' है, यही नाद है, यही सृष्टि है।

यही शुरुआत में थी, और यही अंत में रहेगी।"

प्राचीन भारत की समृद्धि का अनुभव

एक बार एक कंकड़ ने बड़े पत्थर से कहा,

"तुझे पता है, मेरी ख़ासियत ख़ूबसूरती ताकत क्या है?

मैं बहुत प्राचीन हूँ, पता नहीं कब से चला आ रहा हूँ।

चलते-चलते मैंने अपने बाहर का सब कुछ खो दिया है,

लेकिन अब मैं संतुलित हूँ, अब मैं सम्पूर्ण हूँ।

क्योंकि मैंने चलते-चलते सब कुछ अनुभव किया है,

बहुत कुछ पाया है, बहुत कुछ खोया है।